Saturday, September 18, 2010

तब याद आया हमको कि चोटों ने क्या दिया, इन पत्थरो ने जब हमे चलना सिखा दिया

कुछ ख्वाब कुछ उम्मीद थी कुछ इंतजार था ,रोये जो एक बार तो सब कुछ बहा दिया

छोटी सी जिद पे बच्चे कि आँखे जो नम हुई ,थाली में चाँद माँ ने ज़मी पर ही ला दिया

ये सुनके मेरी बेटीया सहमी हुई हैं आज ,फिर से रसोई में कोई जिंदा जला दिया

आँखों ने जब भी की है नई रौशनी की जिद, हमने भी एक चिराग जलाया बुझा दिया

फिर शर्म आई खुद हमे अपने रुसूख पर ,सिक्के को जब फ़कीर ने मिटटी बना दिया

सचिन अग्रवाल तनहा

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Sunday, August 1, 2010

Anjaam

मैं न कहता था सब कुछ बिखर जाएगा
सब्र जिस दिन ये हद से गुज़र जाएगा

बदगुमानी न कर आईना देखकर
जब मिलेगा तू खुद से तो डर जाएगा

जानता हूँ दिए सा जलाकर मुझे
वो हवाओ के जैसे मुकर जाएगा

मैं भी हसता रहा आखिरी सांस तक
वो समझता था ऐसे ही मर जाएगा

साथ निकले थे मैं और आवारगी
देखना अब ये है कौन घर जाएगा

देख लेंगे पसीना जो बुनियाद मैं
इन अज़ाबो का चेहरा उतर जाएगा

सचिन अग्रवाल 'तनहा'