Wednesday, April 18, 2012

ये एहतियात भी रहे ऊचाईयों के साथ ......



















झुक कर ज़मीं को देखिये सच्चाइयों के साथ
ये एहतियात भी रहे ऊचाईयों के साथ ..............

काँधे भी चार मिल न सके उस फ़कीर को
मैं भी खडा हुआ था तमाशाइयों के साथ ..............
...
राज़ी नहीं था सिर्फ मैं हिस्सों की बात पर
क्या दुश्मनी थी वरना मेरी भाइयों के साथ ....................

क्या बेवफाई , कैसी नमी , कैसा रंज ओ गम
रिश्ता ही ख़त्म कीजिये हरजाइयों के साथ .............

वो बेक़रार ही रहा दुनिया की बज़्म में
मैं अब भी मुतमईन हूँ तन्हाइयों के साथ ..........

पत्थर उठा लिया है लो अब हक़ के वास्ते
मेरा भी नाम जोड़ दो बलवाइयों के साथ ......

खामोश रहने वाले उसी एक शख्स को
मैंने उलझते देखा है परछाइयों के साथ ...................

सचिन अग्रवाल

हाँ मगर जो कुछ तुम्हारे बाद था वो लिख दिया ..............














तजरुबा जो ज़िन्दगी का याद था वो लिख दिया
ज़ेहन ओ दिल में कुछ जमा 'अवसाद' था वो लिख दिया ..........

कांपते लब , आँख नम , कहा मुस्कुराकर 'अलविदा'
एक लम्हा जो बहुत बर्बाद था वो लिख दिया..........
...
कागजों पर कैसे कोई ज़िन्दगी लिखता भला
हाँ मगर जो कुछ तुम्हारे बाद था वो लिख दिया ..............

कम नज़र आती है अब पत्थर उठाने की उम्मीद
सीने में थोडा बहुत 'फौलाद' था , वो लिख दिया ......................

सचिन अग्रवाल

ये तुम ही हो मेरे हमराह वरना.....

















बहुत महंगे किराए के मकाँ से
चलो आओ चलें अब इस जहां से ..........

यूँ ही तुम थामे रहना हाथ मेरा
हमे जाना है आगे आसमां से .............
...
ये तुम ही हो मेरे हमराह वरना
मेरे पैरों में दम आया कहाँ से .........

मेरी आँखों से क्या ज़ाहिर नहीं था
मैं तेरा नाम क्या लेता जुबां से ...........

सचिन अग्रवाल

अमीरी फिर कोई नापाक़ रिश्ता फेक आई है......















किसी मासूम को रेशम में लिपटा फेक आई है
कोई शहज़ादी एक नन्हा फ़रिश्ता फेक आई है ..........

यतीमों में इज़ाफा हो गया फुटपाथ पर फिर से
अमीरी फिर कोई नापाक़ रिश्ता फेक आई है ................
...
उसी बुनियाद पर देखो अमीर ए शहर बसता है
गरीबी जिस जगह अपना पसीना फेक आई है ..........

वो पागल आँख में आंसू तो अपने साथ ले आई
मुहब्बत की निशानी था जो छल्ला,फेक आई है .............

ये मैं ही हूँ मुसलसल चल रहा हूँ नंगे पावों से
कि ये तक़दीर तो राहों में शीशा फेक आई है .....................

सचिन अग्रवाल

मुझे तुमसे कभी नफरत नहीं थी......













कोई बदलाव की सूरत नहीं थी
बुतों के पास भी फुर्सत नहीं थी ......

अब उनका हक़ है सारे आसमां पर
कभी जिनके सरों पर छत नहीं थी .............
...
वफ़ा ,चाहत, मुरव्वत सब थे मुझमे
बस इतनी बात थी दौलत नहीं थी ........

फ़क़त प्याले थे जितने क़ीमती थे
शराबों की कोई क़ीमत नहीं थी ..............

मैं अब तक खुद से ही बेशक़ ख़फ़ा हूँ
मुझे तुमसे कभी नफरत नहीं थी .......

गए हैं पार हम भी आसमां के
वंहा लेकिन कोई जन्नत नहीं थी .........

वंहा झुकना पड़ा फिर आसमां को
ज़मीं को उठने की आदत नहीं थी .............

घरों में जीनतें बिखरी पड़ी हैं
मकानों में कोई औरत नहीं थी ...........

सचिन अग्रवाल

सलीक़े और तहज़ीबों की बातें.....















इन आंखो के भंवर मे खो गये क्या
बताओ तुम हमारे हो गये क्या .........

उदासी घर मे क्यूं बिखरी पडी है
फरिश्ते फिर से भूखे सो गये क्या.......
...
हवस आंखो मे अब दिखती नही है
तेरे बच्चे सयाने हो गये क्या.......

हंसा करते थे तुम तो दूसरो पर
मगर ये क्या हुआ अब रो गये क्या.......

वो आंखे झांक कर देखी हैं हमने
ज़रा देखो शराबी हो गये क्या ..........

सलीक़े और तहज़ीबों की बातें
पुराने दिन मेरे बच्चो गये क्या.............?

सचिन अग्रवाल

ये गुनाह तो किया है हाँ हमने.....
















प्यास कर दी है बेजुबां हमने
फूंक डाले हैं जिस्म ओ जां हमने

जिद हमारी ऐ आंधियो देखो
फिर सजा ली हैं कश्तियाँ हमने .......
...
शहर ए संग और पैरवी गुल की
ये गुनाह तो किया है हाँ हमने .....

सबको एक दिन पनाह बख्शेगी
इस ज़मी को कहा है माँ हमने ...........

ये तबाही में हाथ किसका था
किसके देखे हैं ये निशाँ हमने..............


सचिन अग्रवाल