तब याद आया हमको कि चोटों ने क्या दिया, इन पत्थरो ने जब हमे चलना सिखा दिया
कुछ ख्वाब कुछ उम्मीद थी कुछ इंतजार था ,रोये जो एक बार तो सब कुछ बहा दिया
छोटी सी जिद पे बच्चे कि आँखे जो नम हुई ,थाली में चाँद माँ ने ज़मी पर ही ला दिया
ये सुनके मेरी बेटीया सहमी हुई हैं आज ,फिर से रसोई में कोई जिंदा जला दिया
आँखों ने जब भी की है नई रौशनी की जिद, हमने भी एक चिराग जलाया बुझा दिया
फिर शर्म आई खुद हमे अपने रुसूख पर ,सिक्के को जब फ़कीर ने मिटटी बना दिया
सचिन अग्रवाल तनहा
v