Wednesday, April 18, 2012
















वो एक बूढा नज़र जो आ रहा है आज हम सबको
वही खादी वही टोपी वही चश्मा लगाए है ......

वो एक बूढा जिसे अब दूसरा गांधी भी कहते हैं
अहिंसा और सच्चाई के स्वर की गर्जना करते.....
...
वो एक बूढा जो अक्सर लड़ता आया है बुराई से
गरीबों और मजबूरों के हक की बात करता है.....

वो एक बूढा कि जो बिलकुल नहीं डरता सियासत से
सियासत वो कि जिसके सामने टिकता नहीं कोई............

वो एक बूढा कि जिसने घर नहीं देखा है सदियों से
न खुद की ज़िन्दगी कोई, नहीं परिवार है कोई .....

वो एक बूढा हमें दिखने में जो कमज़ोर लगता है
उसी ने लानतें भेजी हैं अक्सर नौजवानी को ..........

वो एक बूढा खड़ा है आज जो एक मसअला लेकर
अगर वो झूठ है तो क्यों सियासी छटपटाहट है ............

वो एक बूढा उठा दे हाथ तो बादल गरज़ते हैं
कि एक आवाज़ पे जिसकी कई सैलाब आते हैं........

वो एक बूढा कि जिसके साथ सारा मुल्क चलता है
हरेक बच्चा भी ये कहता है मैं अन्ना हजारे हूँ..........

वो एक बूढा मगर कुछ रोज़ से भूखा है क्यू यारो
अगर ये मुल्क की मुश्किल है फिर खामोश क्यू हो तुम .........

सियासत आँख मूंदे, कान में अंगुली दिए क्यूँ है
इसे ये मुल्क की चीखें सुनाई क्यूँ नहीं देतीं ...............

ये संसद बहरी है कुछ भी नहीं होगा हज़ारों से
ज़रुरत है कि अब घर से करोड़ों में निकल आओ...........

कि अब ये वक़्त है कुछ मसअले निपटा लिए जाएँ
इन्हें समझा दिया जाए कि ये जनतंत्र है यारो ........

यंहा जनता की मर्ज़ी के सिवा कुछ भी नहीं होगा
कि अब हिन्दोस्तां की आबरू लुटने नहीं देंगे .........

चलो इन रहनुमाओं को दिखा दे आज हद इनकी
नहीं तो ये ही रहबर मुल्क सारा बेच डालेंगे.........

वो एक बूढा कि जिसमे देखा है मैंने बुजुर्गों को
कि जैसे धूप सहता पेड़ सायादार हो कोई.............

मैं एक छोटा सा शायर और कुछ तो कह नहीं सकता
बस इतना चाहता हूँ उम्र मेरी भी उन्हें लग जाए......................

वन्दे मातरम

सचिन अग्रवाल

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