जिधर देखो क़तारों में खड़ा है
मगर ये आदमी बेहद बड़ा है
समंदर लाख गहरा है तू लेकिन
ये क़तरा अपनी ही जिद पे अड़ा है
...
किसी मजदूर के माथे पे देखो
चमकती धूप ने गौहर जड़ा है
बहू बेटों ने घर कैसा सवारा
ये कूड़ेदान में क्या क्या पड़ा है
हमारे ज़ेहन में ठंडक बहुत है
हमारे घर में मिटटी का घड़ा है........................
सचिन अग्रवाल
No comments:
Post a Comment