Wednesday, April 18, 2012

न जाने और देखेगा तमाशा आसमां कब तक.....














ये जलते घर ये चिथड़े आदमी के और धुआं कब तक
ये नफरत के निशाँ कब तक ये आतिशबाज़ियाँ कब तक.........

अगर सच की हिमायत हो तो सर के ताज का डर है
सिले हैं होठ, मुंसिफ चुप, सियासत बेज़ुबां कब तक ...

चलो देखें मुकदमों का नतीजा कब निकलता है
सुबूतों के लिए लाशें गिनेंगे हुक्मुरां कब तक .........

न जाने कितनी झुलसेगी ज़मीं एक बूँद की खातिर
न जाने और देखेगा तमाशा आसमां कब तक ..................

सचिन अग्रवाल

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