Wednesday, April 18, 2012

ये एहतियात भी रहे ऊचाईयों के साथ ......



















झुक कर ज़मीं को देखिये सच्चाइयों के साथ
ये एहतियात भी रहे ऊचाईयों के साथ ..............

काँधे भी चार मिल न सके उस फ़कीर को
मैं भी खडा हुआ था तमाशाइयों के साथ ..............
...
राज़ी नहीं था सिर्फ मैं हिस्सों की बात पर
क्या दुश्मनी थी वरना मेरी भाइयों के साथ ....................

क्या बेवफाई , कैसी नमी , कैसा रंज ओ गम
रिश्ता ही ख़त्म कीजिये हरजाइयों के साथ .............

वो बेक़रार ही रहा दुनिया की बज़्म में
मैं अब भी मुतमईन हूँ तन्हाइयों के साथ ..........

पत्थर उठा लिया है लो अब हक़ के वास्ते
मेरा भी नाम जोड़ दो बलवाइयों के साथ ......

खामोश रहने वाले उसी एक शख्स को
मैंने उलझते देखा है परछाइयों के साथ ...................

सचिन अग्रवाल

10 comments:

  1. superb. sundar Gazal.
    Plz visit My blogs

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  2. वाह्ह्ह....शानदार गज़ल।

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  3. जीवन के विविध रंग बख़ूबी समेटे गए हैं बेहतरीन ग़ज़ल में। उम्दा शेर।

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  4. बेहद उम्दा गज़ल.बेहतरीन लेखन.

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  5. waah waah bahut sundar gajal behatarin ...gajal umda sher

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  6. वाह!!!!
    लाजवाब...

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  7. शानदार गजल ।

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  8. शानदार गजल ।

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  9. शानदार गजल ।

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