
लगे जब शहर अन्जाना
तू मेरे गाँव में आना...
मुहब्बत में खता अपनी
न मैं माना न वो माना ....
...
पतंगों की उड़ानों से
किसी बच्चे को बहकाना......
ये रिश्तों की तिजारत है
किसे खोना किसे पाना.....
जब अखबारी उजाले हों
मेरे ख्वाबो चले जाना.....
भुला दो बेवफाई पर
वफ़ा के अश्क बरसाना...
तबाही ! याद आता है
मुझे अब माँ का समझाना .....
मिले जब तो बहुत रोये
मैं दीवाना वो दीवाना.........
मेरे बचपन की तस्वीरें
मैं खुद को ही न पहचाना......
सचिन अग्रवाल
तू मेरे गाँव में आना...
मुहब्बत में खता अपनी
न मैं माना न वो माना ....
...
पतंगों की उड़ानों से
किसी बच्चे को बहकाना......
ये रिश्तों की तिजारत है
किसे खोना किसे पाना.....
जब अखबारी उजाले हों
मेरे ख्वाबो चले जाना.....
भुला दो बेवफाई पर
वफ़ा के अश्क बरसाना...
तबाही ! याद आता है
मुझे अब माँ का समझाना .....
मिले जब तो बहुत रोये
मैं दीवाना वो दीवाना.........
मेरे बचपन की तस्वीरें
मैं खुद को ही न पहचाना......
सचिन अग्रवाल
मेरे बचपन की तस्वीरें
ReplyDeleteमैं खुद को ही न पहचाना......
बचपन की मैं....
और मैं ही नहीं पहचान पा रही हूँ
वाह.. खूब