Wednesday, April 18, 2012

कि मय्यत बाप की थी और बड़ा बेटा नहीं आया .......

















जो छलके आँख से ऐसा कोई किस्सा नहीं आया
कुछ ऐसे भी किनारे हैं जहाँ दरिया नहीं आया

इसी दिन के लिए कर्ज़े से उसको शहर भेजा था
कि मय्यत बाप की थी और बड़ा बेटा नहीं आया
...
सभी को ज़िद है माँ बाबा को अपने साथ रखने की
किसी के नाम पर अब तक कोई हिस्सा नहीं आया

बिना समझाए उसको अपनी अय्याशी समझ आई
जवां बेटे का बरसों तक भी जब रिश्ता नहीं आया

मेरे फूलों के बदले में फ़क़त बारूद भेजा है
पडौसी की तरफ से कोई गुलदस्ता नहीं आया .............


सचिन अग्रवाल

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